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Sanjay Purohit
स्वतंत्रता या उच्छृंखलता: युवाओं के बदलते मानक
समाज की चेतना का सबसे सजीव रूप उसका युवा वर्ग होता है। युवाओं में ऊर्जा होती है, नवीनता की खोज होती है और साहस होता है सीमाओं को लांघने का। यही विशेषताएं किसी भी देश और समाज के भविष्य को गढ़ती हैं। लेकिन जब यही युवा दिशा और मूल्यों से कटकर केवल स्वतंत्रता के नाम पर स्वेच्छाचार की ओर बढ़ने लगे, तब यह चिंता का विषय बन जाता है।
19 views • 2025-07-27
Sanjay Purohit
सावन, हरियाली और श्रृंगार — सनातन संस्कृति की त्रिवेणी
सावन मात्र एक ऋतु नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा को छू लेने वाला एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह वह कालखंड है जब आकाश से बूंदें नहीं, वरन् देवी-आशीर्वाद बरसते हैं। धरती माँ का आँचल हरियाली से सज जाता है और स्त्री का सौंदर्य, श्रृंगार और भावनात्मक गहराई अपने चरम पर पहुँचती है।
74 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
जागरूक होता इंसान और सिसकती संवेदनाएँ
हम एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ मनुष्य 'जागरूक' तो है, लेकिन भीतर से 'असंवेदनशील' होता जा रहा है। तकनीक, सूचना और वैज्ञानिक प्रगति ने उसके जीवन को सुविधाजनक अवश्य बना दिया है, परंतु इस यात्रा में उसने बहुत कुछ खोया भी है—खासतौर पर वह सहज मानवीय भावनाएँ जो किसी भी समाज को जीवंत बनाती हैं।
73 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
प्रेरणा – आत्मबल का जाग्रत स्रोत
प्रेरणा – यह एक ऐसा शब्द है, जिसमें सकारात्मकता का असीम बोध समाहित होता है। यह जीवन के सार्थक पहलुओं और उद्देश्यों की ओर निरंतर अग्रसर करती है। प्रेरणा, हमारे प्रयासों को ऊर्जा और सार्थक गति प्रदान करने में एक अदृश्य शक्ति के रूप में कार्य करती है, जो हर ठहराव में भी प्रवाह भर देती है।
76 views • 2025-07-23
Sanjay Purohit
बाजार संस्कृति में गुम होती खुशियां और मस्ती — क्या हम अपनी असली दुनिया भूल रहे हैं?
आज का दौर बाजारवाद और उपभोक्तावाद का है। हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में ग्राहक बन गया है—कभी वस्त्रों का, कभी गैजेट्स का, कभी ऑनलाइन कंटेंट का। पर क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि इस भागती-दौड़ती बाजार संस्कृति में हम अपनी असली खुशियों और मस्ती को कहीं खो तो नहीं बैठे हैं?
100 views • 2025-07-17
Sanjay Purohit
श्रावण मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व: भगवान शिव की कृपा और शांति प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन
हिंदू धर्म में श्रावण मास को भगवान शिव का प्रिय महीना माना गया है। इस मास में विशेष रूप से सोमवार के दिन भक्तगण उपवास रखते हैं, जलाभिषेक करते हैं और रुद्राभिषेक के द्वारा भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। रुद्राभिषेक केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा जागरण, मानसिक शांति और जीवन में संतुलन लाने का एक सशक्त साधन है।
103 views • 2025-07-16
Sanjay Purohit
सृजन और सावन: प्रकृति, अध्यात्म और जीवन का गहरा संबंध
भारतीय संस्कृति में सावन केवल वर्षा ऋतु भर नहीं है, बल्कि यह जीवन, सृजन और नवचेतना का प्रतीक भी माना गया है। जब आकाश से बरसात की बूंदें धरती पर गिरती हैं, तो मिट्टी की भीनी खुशबू हर दिशा में फैल जाती है और चारों ओर हरियाली बिखर जाती है। हरे-भरे वृक्ष, खिलते पुष्प, और लहराते खेत—सभी जैसे नवजीवन से भर उठते हैं। यह माह पर्यावरण, अध्यात्म और मानवीय भावनाओं में गहरा तालमेल स्थापित करता है।
110 views • 2025-07-15
Sanjay Purohit
ध्रुव तारे की खोज: संतत्व के संकट पर आत्ममंथन
भारतीय जनमानस में संतों का स्थान अनादिकाल से अत्यंत विशेष रहा है। उन्हें केवल धर्मगुरु नहीं, बल्कि ईश्वरतुल्य मान्यता प्राप्त रही। संतों ने समय-समय पर समाज को दिशा दी और जब भी राष्ट्र पर संकट आया, अपने प्राणों की आहुति देने में भी वे पीछे नहीं हटे। संत का व्यक्तित्व उस विराट मौन सरिता की तरह है, जो निरंतर जीवन और जीव को पोषित करती है, स्वयं किसी सत्ता या प्रसिद्धि की इच्छा नहीं रखती।
106 views • 2025-07-11
Sanjay Purohit
शिव और सावन: सनातन धर्म में आत्मा और ब्रह्म का अभिन्न संगम
भारतीय सनातन परंपरा में शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय चेतना के प्रतीक हैं। उन्हीं शिव से जुड़ा सावन मास, साधना, भक्ति और तात्त्विक चिंतन का विशेष समय माना जाता है। यह महीना जहां प्रकृति के जल चक्र से जुड़ा है, वहीं आत्मा और परमात्मा के गूढ़ संबंध को भी उद्घाटित करता है।
127 views • 2025-07-11
Sanjay Purohit
भाषा को बंधन नहीं, सेतु बनाए – संघीय ढांचे की आत्मा को समझे
भारत विविधताओं का अद्भुत संगम है—यहां हर कुछ किलोमीटर पर बोली, संस्कृति और रहन-सहन बदल जाता है। इस विविधता के बीच "भाषा" केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि पहचान, स्वाभिमान और संवैधानिक अधिकारों का प्रतीक बन चुकी है। लेकिन जब भाषा को "राष्ट्रवाद" के चश्मे से देखा जाता है और किसी एक भाषा को अन्य पर वरीयता देने की कोशिश होती है, तब यह लोकतंत्र की आत्मा—संघीय ढांचे—को चुनौती देती है।
91 views • 2025-07-08
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